नई दिल्ली:
केंद्र ने गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि वह देश के कई उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति पर कॉलेजियम की सिफारिशों के संबंध में अगले सप्ताह कुछ विवरण उपलब्ध कराएगा।
इस आशय की दलीलें अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष रखीं, जबकि उन्होंने शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध एक जनहित याचिका पर सुनवाई स्थगित करने की मांग की।
शीर्ष विधि अधिकारी ने पीठ से कहा, “मैं कॉलेजियम की सिफारिशों के बारे में कुछ ब्यौरा उपलब्ध कराऊंगा। कृपया याचिका (जो शुक्रवार को सूचीबद्ध है) को एक सप्ताह बाद सूचीबद्ध करें।” पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
पीठ ने कहा कि स्थगन के लिए दलीलें शुक्रवार को ही दी जा सकती हैं क्योंकि मामला पहले से ही विचाराधीन है।
इस बीच, मुख्य न्यायाधीश ने शीर्ष विधि अधिकारी को बताया कि झारखंड सरकार ने राज्य के उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं करने को लेकर केंद्र के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की है।
हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झामुमो सरकार ने न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव को झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी नहीं देने पर केंद्र के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा, “मुझे इसकी जानकारी नहीं है।”
इससे पहले, 13 सितंबर को अटॉर्नी जनरल ने पीठ को बताया था कि केंद्र सरकार को कुछ “संवेदनशील सामग्री” मिली थी, जिसके कारण उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की सिफारिशों के कार्यान्वयन में देरी हुई।
शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि उन्हें केंद्र सरकार से कुछ सूचनाएं मिली हैं जो संवेदनशील प्रकृति की हैं और उन्हें सार्वजनिक करना न तो संस्थान के हित में होगा और न ही संबंधित न्यायाधीशों के हित में होगा।
वेंकटरमणी ने पीठ से कहा था, “मैं न्यायाधीशों के अवलोकन के लिए अपनी जानकारी और सुझाव एक सीलबंद लिफाफे में रखना चाहूंगा।”
अधिवक्ता हर्ष विभोर सिंघल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई 20 सितंबर को निर्धारित की गई।
सिंघल ने यह निर्देश देने की मांग की है कि सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित न्यायाधीशों की नियुक्ति को अधिसूचित करने के लिए केंद्र के लिए समय सीमा तय की जाए।
इसमें उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों को अधिसूचित करने के लिए समय न होने की स्थिति को समाप्त करने के लिए भी निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि निश्चित अवधि के अभाव में, “सरकार मनमाने ढंग से नियुक्तियों की अधिसूचना में देरी करती है, जिससे न्यायिक स्वतंत्रता पर कुठाराघात होता है, संवैधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में पड़ती है तथा न्यायालय की गरिमा और बुद्धिमत्ता का अनादर होता है।”
याचिका में कहा गया है कि यदि किसी नाम पर आपत्ति नहीं की जाती है या ऐसी निश्चित अवधि के अंत तक नियुक्तियां अधिसूचित नहीं की जाती हैं, तो ऐसे न्यायाधीशों की नियुक्तियां अधिसूचित मानी जानी चाहिए।
सीजेआई की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने 11 जुलाई को केंद्र को सात उच्च न्यायालयों- दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, केरल, मध्य प्रदेश, मद्रास और मेघालय के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश की थी। ये सिफारिशें केंद्र के पास मंजूरी के लिए लंबित हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने 17 जुलाई को मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तथा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित अपने 11 जुलाई के प्रस्ताव में संशोधन किया।
ऐसी अटकलें थीं कि केंद्र द्वारा कॉलेजियम के साथ कुछ महत्वपूर्ण जानकारी साझा किए जाने के बाद कॉलेजियम के 11 जुलाई के प्रस्ताव में बदलाव किया गया।
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